– धन धान्य प्रयोगेषु विद्या संग्रहेषु च। – आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्॥
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्या एक ऐसी चीज है जो मानव को कहां से कहां पहुंचा सकती है इसका कोई भरोसा नहीं है विद्या को कभी भी प्राप्त किया लेने देने में कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए
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चाणक्य नीति यह कहती है कि आपसी व्यवहार आपसी व्यवहार का मतलब यानी आप जिस भी आदमी से जैसा व्यवहार करेंगे सामने से भी आपको वैसा ही व्यवहार मिलेगा
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